निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-

अब तो, आपका पूजा-पाठ न देखा जाएगा, आपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगी।


लेखक प्रस्तुत पंक्तियों में हमें भविष्य में सामाजिक और धार्मिक कसौटी के पूरी तरह बदल जाने के बारे में आगाह कर रहा है। उनका इस संबंध में हमें अपने द्वारा ही हमारे व्यक्तित्व को दूसरों के परिपेक्ष्य में और दूसरों का हमारे परिपेक्ष्य में आकलन परस्पर अच्छे आचरण द्वारा निर्धारित होना अनुकूल मानना है। वे अब और आगे स्वार्थी लोगों द्वारा धर्म का धंधा चला पाने की संभावना से इंकार कर रहे हैं। वे समाज में सिर्फ सदाचरण रखने वाले लोगों के भले माने जाने की बात हमसे कह रहे हैं| यानी भविष्य में लोगों का पूजा पाठ अथवा धार्मिक धंधा नहीं देखा जाएगा बल्कि उनकी भलमनसाहत ही उनके आचरण की कसौटी होगी|


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