किसी भी क्रिया को संपन्न अथवा पूरा करने में जो भी संज्ञा आदि शब्द संलग्न होते हैं, वे अपनी अलग-अलग भूमिकाओं के अनुसार अलग-अलग कारकों के रूप में वाक्य में दिखाई पड़ते हैं; जैसे- “वह हाथों से शिकार को जकड़ लेती थी|’’ जकड़ना क्रिया तभी संपन्न हो पाएगी जब कोई व्यक्ति (वह) जकड़नेवाला हो, कोई वस्तु (शिकार) हो, जिसे जकड़ा जाए। इन भूमिकाओं की प्रकृति अलग-अलग है। व्याकरण में ये भूमिकाएँ कारकों के अलग-अलग भेदों, जैसे- कर्ता, कर्म, करण आदि से स्पष्ट होती हैं।

अपनी पाठ्यपुस्तक से इस प्रकार के पाँच और उदाहरण खोजकर लिखिए और उन्हें भली-भाँति परिभाषित कीजिए।



पाठ्यपुस्तक से खोजे गए पाँच उदाहरण:

(क) यदि संसार में बदलू को किसी बात से चिढ़ थी तो वह थी काँच की चूडि़यों से।


संसार में - अधिकरण कारक


बदलू को - कर्मकारक


किसी बात से- अपादान कारक


काँच की चूडि़यों- संबंध कारक


(ख) पत्र-संस्कृति विकसित करने के लिए स्कूली पाठ्यक्रमों में पत्र-लेखन का विषय भी शामिल किया गया।


विकसित करने के लिए- संप्रदान कारक


पाठ्यक्रमों में- अधिकरण कारक


पत्र-लेखन का- संबंध कारक


(ग) कुछ नौजवानों ने ड्राइवर को पकड़कर मारने-पीटने का मन बनाया।


नौजवानों ने- कर्ता कारक


ड्राइवर को- कर्म कारक


(घ) भारतीय सिनेमा के जनक फाल्के को ‘सवाक्’ सिनेमा के जनक अर्देशिर की उपलब्धि को अपनाना ही था, क्योंकि वहाँ से सिनेमा का एक नया युग शुरू हो गया था।


भारतीय सिनेमा के अर्देशिर की,


सवाक् सिनेमा के- संबंध कारक


फाल्के को,


उपलब्धि को - कर्म कारक


वहाँ से - अपादान कारक


(घ) मैं आगे बढ़ा ही था कि बेरे की झाड़ी पर से मोती-सी बूँद मेरे हाथ पर आ गिरी।


मैं - कर्ता कारक


बेर की - संबंध कारक


झाड़ी पर से - अपादान कारक


मेरे हाथ पर - अधिकरण कारक


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