बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं?
(क) शिशु की जिद में भी प्रेम का प्रकटीकरण है। जिद करता है, शैतानियाँ करता है, संभव है माता-पिता से गुस्सा भी हो जाता है लेकिन उन सबके पीछे स्नेहपूर्ण संबंध है|
(ख) शिशु और माता-पिता के सानिध्य में यह स्पष्ट करना कठिन होता है कि माता-पिता का स्नेह शिशु के प्रति है या शिशु का माता-पिता के प्रति दोनों एक ही प्रेम के सम्पूरक होते हैं। वे आपस में स्नेह के सूत्र में बंधे हुए हैं और जो प्रेम एक दूसरे से करते हैं उसका कोई मोल-तौल नहीं करते| एक दूसरे को असीम प्रेम एवं स्नेह देते चले जाते हैं| माता-पिता एवं शिशुओं के स्नेह में सीमाएँ नहीं है|
(ग) शिशु अपनी मुस्कराहट, उनकी गोद में जाने की ललक, उनके साथ विविध क्रीड़ाएँ करके अपने प्रेम का प्रकटीकरण करते हैं।
(घ) माता-पिता की गोद में जाने के लिए मचलना उसका प्रेम ही होता है।
इस प्रकार माता-पिता के प्रति शिशु के प्रेम को शब्दों में व्यक्त करना कठिन होता है। उसे सिर्फ उन भावों के माध्यम से समझा जा सकता है| उस प्रेम एवं स्नेह को मापा नहीं जा सकता उसे तो सिर्फ महसूस किया जा सकता है|