जैसे बादल उमड़-घुमड़कर बारिश करते हैं वैसे ही कवि के अंतर्मन में भी भावों के बादल उमड़-घुमड़कर कविता के रूप में अभिव्यक्त होते हैं। ऐसे ही किसी प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर अपने उमड़ते भावों को कविता में उतारिए।


सूखते खेत, अनमने मन

उद्विग्न मन, चिंतातुर कृषक


कैसे होगी, धान की रोपाई।


आकाश की ओर ताकते


सूखते धान-पौधे को देखते


छोटी बालिका।


कृषक पिता से है पूछती।


बादल क्यों नहीं बरस रहे ?


क्या चातक ने व्रत तोड़ दिया है?


वह व्रत रखे हमारे लिए


कृषक पिता ने कहा


बादलों ने सुना


बादल घुमड़-घुमड़ आए


गरजे खूब, बरसे खूब


कृषक-मन हरसे खूब


वाह! चातक-तपस्या।


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