छायावाद की एक खास विशेषता है अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है? लिखिए।


प्रस्तुत कविता में निराला जी ने फाल्गुन मास का मानवीकरण किया है। फाल्गुन यानि फरवरी-मार्च का महीना। इसी महीने में बसंत ऋतु का आगमन होता है। पुराने पत्तों का झड़ना, नये पत्तो का आना। ये सब बसंत में ही होता है। रंग बिरंगे फूलो से सारा वातावरण सुगन्धित हो उठता है। कवि को ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे फाल्गुन के सांस लेने पर सभी जगह सुगंध फ़ैल गयी हो। घर-घर सुगन्धित हो गया हो और इन सब से मन प्रसन्नचित हो उठता है। कविता की निम्न पंक्तियाँ इस बात का इशारा करती हैं।

कहीं साँस लेते हो,


घर-घर भर देते हो।


कवि प्राकृतिक सौंदर्य का भी वर्णन इस कविता के माध्यम से करता है। सभी पेड़-पौधे नए पत्तो से लद गए हैं। कहीं लाल रंग तो कहीं हरे रंग के फूल प्रकृति की सुंदरता में चार चाँद लगा रहे हैं। कवि का प्रकृति के साथ इतना लगाव हो जाता है कि वह उसे देखे बिना रह नहीं पाता। प्रकृति की सुंदरता कवि की आँखों पर अनंत काल के लिए रुक जाती है। कवि ने इसे इस प्रकार कहा है-


आँख हटाता हूँ तो


हट नहीं रही है।


इस प्रकार संपूर्ण कविता में फागुन की प्रसन्नता, ऋतु बसंत की प्रसन्नता मानव-मन के रूप में चित्रित हो रही है।


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