आप जब भी किसी बच्चे से पहली बार मिलें तो उसके हाव-भाव, व्यवहार आदि को सूक्ष्मता से देखिए और उस अनुभव को कविता या अनुच्छेद के रूप में लिखिए।


कविता-शिशु


फिर भी तुम कितने सुंदर हो,


कि सुंदरता की प्रति-मूरति हो।


धूल-धूसरित अंग तुम्हारे


वस्त्र-हीन अंग तुम्हारे


निश्छल हो, तुम ऐसे लगते


सौम्यता की प्रति-मूरति हो। (1)


किलकारी भरते आँगन में


प्रसन्नता भरते हर कोने में


घुटरुन चलते ऐसे लगते


तुम कृष्णा की प्रति-मूरति हो। (2)


पानी में तुम छप-छप करते


रजकणों से तुम खेला करते


देख छवि, खुश हो माँ कहती


तुम चंचलता की प्रति-मूरति हो। (3)


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