लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?


लेखक को पास में ही जाना था इसलिए उन्होंने ट्रेन का सेकंड क्लास का टिकट लिया। लेखक सेकंड क्लास के डिब्बे में चढ़ गए। एक र्बथ पर लखनऊ की नबाबी नस्ल के एक सफ़ेदपोश सज्जन सुबदीहा से पालथी मारकर बैठे थे। सज्जन ने लेखक के आने पर कोई उत्साह नहीं दिखाया। लेखक का अचानक चढ़ जाना उन्हें अच्छा नहीं लगा। उन्हें एकांतवास में बाधा का अनुभव होने लगा। लेखक को लगा शायद नवाब ने सेकंड क्लास का टिकट इसलिए लिया है ताकि वे अकेले यात्रा कर सकें परंतु अब उन्हें ये बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। नवाब साहब खिड़की से बाहर देख रहे थे परंतु लगातार कनखियों से लेखक की ओर देख रहे थे। वे आमने सामने होकर भी खिड़की से बाहर झाँकते रहे और लेखक को न देखने का नाटकीय प्रदर्शन करते रहे। उन्होंने लेखक से मिलने तथा बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। इस प्रकार लेखक को नवाब साहब के इन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं।


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