पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत है- पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।


पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना उनके अनपढ़ होने का सबूत बिल्कुल नहीं है। हमें यह ज्ञात है कि पुराने समय में प्राकृत भाषा आम लोगों की बोलचाल की भाषा मानी जाती थी और अधिक से अधिक लोग संवाद के लिए इसी भाषा का प्रयोग करते थे और इसी कारण इस दौर के न जाने कितने ही ग्रंथ प्राकृत भाषा में लिखे गये। ये सारे ग्रंथ प्राकृत भाषा में होने से लोगों के बीच आसानी से ग्राह्य थे। इन ग्रंथों के प्राकृत भाषा में लिखा होने के कारण लोग इन ग्रंथों को आसानी से समझ पाते थे| इस प्रकार प्राकृत भाषा को जनसाधारण की भाषा माना गया। यानि अधिक से अधिक लोग प्राकृत भाषा बोलते थे। यही हाल अधिकतर महिलाओं की भाषा बोलने को लेकर था। यानि अधिकतर महिलाएं प्राकृत भाषा बोलती थीं। उन स्त्रियों का प्राकृत भाषा में बोलना हमें उनके साक्षर होने की पुष्टि कराता है। हम भिन्न ग्रंथों में उन स्त्रियों के प्राकृत में बोलने पर आसानी से समझ सकते हैं कि प्राकृत इन लोगों द्वारा बोली जाने वाली एक प्रकार की राष्ट्रभाषा थी जिस प्रकार आज हिन्दी भाषा है। हम हिंदी बोलने लिखने और पढने वालों को आज साक्षर समझते हैं और उन्हें अनपढ़ समझने की भूल कदापि नहीं कर सकते। हम जिस प्रकार हिन्दी बोलने वाली महिलाओं को अनपढ़ कदापि नहीं ठहरा सकते तो उसी प्रकार प्राकृत भाषा बोलने वाली प्राचीनकालीन महिलाओं को भी हमें अनपढ़ नहीं मानना चाहिए। इस प्रकार इसका साफ सबूत मिलता है कि वे प्राकृत बोलने वाली स्त्रियां साक्षर थीं यानि वे अनपढ़ नहीं थीं।


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