बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?


भारत रत्न से सम्मानित होने पर भी बिस्मिल्ला खाँ के जीवन की सहजता और सरलता में कोई अंतर नहीं आया। भारत रत्न की उपाधि मिलने के बाद भी उनमें घमंड कभी नहीं आया। वे कृत्रिमता से कोसों दूर थे। बिस्मिल्ला खाँ अपने धर्म के प्रति संपूर्ण समर्पित थे और अपने नियम के अनुसार वे सच्चे मुसलमान की तरह पाँचों वक्त की नमाज अदा करते थे मुस्लिम होने के बाद भी उन्होंने हिंदु धर्म का सम्मान किया तथा हिंदु-मुस्लिम एकता को कायम रखा तथा ईश्वर के प्रति उनके मन में अगाध भक्ति थी। बाबा विश्वनाथ के मंदिर और बालाजी के मंदिर में शहनाई बजाया करते थे। बिस्मिल्ला खाँ- मंदिर में रियाज के लिए जाते समय अपने प्रिय रास्ते से ही जाते थे जिसमें उनकी प्रेरणास्त्रेत रसूलन और बतूलनबाई का घर पडता था। इस प्रकार धुन के पक्के इरादों ने उन्हें शहनाई वादन में सर्वोपरि बना दिया। गंगा को श्रद्धा से गंगा मैया पुकारते थे। शहनाई वादक के रूप में इतिहास के सर्वोपरि शहनाई वादक रहे, फिर भी अपने को अपूर्ण मानते थे। वे अपनी हर दुआ में, सुर में तासीर पैदा करने की खुदा से प्रार्थना करते थे। काशी के प्रति उनकी अपार श्रद्धा तथा भक्ति थी। बिस्मिल्ला खाँ का शहनाई वादक के रूप में सर्वोपरि स्थान पाने के बाद भी अस्सी वर्ष की उम्र तक अर्थात् जीवन-पर्यंत रियाज चलता रहा। इस प्रकार यह उनके अदम्य उत्साह प्रतीक रहा।


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