लेखक की दृष्टि में ‘सभ्यता’ और ‘संस्कृति’ की सही समझ अब तक क्यों नहीं बन पाई है?


लेखक की दृष्टि में सभ्यता और संस्कृति शब्दो का प्रयोग अधिक होता है परन्तु समझ में कम आता है। इनके साथ अनेक तरह के भारी भरकम विशेषण लगा देने से इन्हे समझना और भी कठिन हो जाता है। लोग इनके संबंध में अपने विचार प्रस्तुत करते हैं लेकिन आम जनता की इन शब्दों अथवा इनके अर्थ के संबंध में अब तक एक स्पष्ट समझ नहीं बन पायी है| लोग अपने हिसाब से इन शब्दों अथवा अवधारणाओं को उपयोग करते हैं एवं अपनी सुविधा के अनुसार ही वे इनका अर्थ निकालते हैं| अतः इन दोनों शब्दों के संबंध में अर्थ की दृष्टि से एवं इनके उपयोग की दृष्टि से भी समाज एवं कहें तो लेखक वर्ग में भी अब तक सही समझ नहीं बन पाई है|


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