निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-

जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।


मन-काँचें नाचै वृथा, साँचै राँचै रामु।।


आडम्बर और ढ़ोंग किसी काम के नहीं होते हैं। मन तो काँच की तरह क्षण भंगुर होता है जो व्यर्थ में ही नाचता रहता है। माला जपने से, माथे पर तिलक लगाने से या हजार बार राम राम लिखने से कुछ नहीं होता है। इन सबके बदले यदि सच्चे मन से प्रभु की आराधना की जाए तो वह ज्यादा सार्थक होता है।


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