निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

आँखे आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो मंद गति से झूमता पतन की ओर चला आ रहा था, मानो कोई आत्मा स्वर्ग से निकलर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जा रही हो।


ये पंक्तियां उस समय को दर्शाती है जब लेखक संध्या के समय एक कनकौआ लूटने बेतहाशा दौड़ा जा रहा था। उसकी आंखें तो आसमान की ओर थी और मन भी आकाश में विचरते हुए पथिक के समान था जो धीरे-धीरे पतंग की ओर बढ़ रहा था। नीचे आती पतंग पर नजर टिकाए लेखक उसी दिशा में भागा जा रहा था। उसे इधर-उधर से आने वाली किसी भी चीज की कोई खबर नहीं थी। जब अचानक बड़े भाई साहब ने उसका हाथ पकड़ लिया तो उसे होश आया लेकिन इसके बाद जमकर लेखक की फटकार पड़ी।


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